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एक था जादूगर, उसके घर के पास गलमुच्छन नाम का एक आदमी रहता था । उसके खूब बड़ी-बड़ी मूछें थीं। वह आलू, शकर-कंद वगैरह की खेती करता था। उस साल उसके जेत में खूब आलु हुए थे। लेकिन उसके पास उन्हें बाजार तक पहुँचाने के लिए बोरे नहीं थे । जब तक आलू बिक न जाते, वह बोरे खरोद भी नहीं सकता था । उसके यहाँ कुछ पुराने टाट पड़े थे । उसने सोचा उन्हीं में से वह कुछ बोरे बना लेगा । लेकिन एक ही बोरा बनाते-बनाते वह काफी थक गया ।





उसने सोचा अगर वह पड़ोसी जादूगर की सुई माँग लाए, तो बिना मेहनत के बहुत से बोरे तैयार हो जाएँगे। उसे कुछ करना नहीं पड़ेगा, सिर्फ कह देना पड़ेगा कि सुई एक बोरा तो सी दे। बस सुई खट्खट्‌ बोरा सी देगी ।



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यही सोच कर वह जादूगर के यहाँ गया और दरवाजा खटखटाया। जादूगर ने दरवाजा खोला । गलमुच्छन ने कहा, “भाई जादूगर, थोड़ी देर के लिये अपनी सुई मुझे दे दो । मैं कुछ बोरे सी कर तुम्हें वापस कर जाऊँगा ।”


जादूगर ने कहा “नही, भाई मुच्छत, मैं यह सुई नहीं दे सकता । बहुत कीमती है।”


गलमुच्छन उल्टे पाँव वापस आने लगा । जादूगर तले अन्दर जाकर फिर दरवाजा बंद कर लिया। जाते-जाते गलमुच्छन ने देखा जादूगर के घर को एक खिड़की खुली थी । उसके मन में आया कि क्यों न वह इसी खिड़को से भीतर घुस जाए और सुई जहाँ रखी हो, वहाँ से उठा लाए। एक बार वह कुछ झिझका, फिर आगे बढ़ कर खिड़की से कूद कर भीतर चला गया। सुई एक मेज पर डिबिया में बन्द रखी हुईं थो। मुच्छन उस डिबिया को पहचान गया। उसो डिबिया में से उसने कई बार सुई निंकालते हुए देखा था। उसने वह डिबिया उठाई और जिंसे रास्ते आया था, उसी से' बाहर निकल कर घर की ओर  पहुँच कर उसने टाट के सारे पुराने टुकड़े इकट्ठे .किएं और उन्हें जमीन पर कतार में रख दिया । फिर सुई की डिबियां से निकाल कर कहा, “सुई, मुझे कुछ बोरे सी दो।


सुई तुरन्त ब्रोरे सीने में लग गई । वह उछल कर एक टाट के टुंकड़े पर पहुँची और अपने आप ही टाट को मोड़कर बोरा सीने लगी गलमुच्छन बहुत खुश हुआ | वह बैठा-बैठा सिर्फे सुई को बोरः सीते देखंतां रहा। सुई एक बोरा सो चुकने के बाद दूसरे दाट पर और दम-भर यहा रा बोरा भी तैयांर करं दिया । दस मिनिट बीतते-बीतते सुई ने वहाँ इंकट्ठे किए हुए सारे टाट के बोरे सी दिए।


सुईं जैसे रुकना ही नहों जानती थी। अब उसने चारपाईं  रखा हुआ एक कंबल फाड़ा और उसे सीने लगी । देखते-देखते उसका भी एक.बड़ोन्सा: बोरे के आकार का यैला तैकारः हो ग़या। गलमुच्छन को बड़ा- गुस्सा आया. उसने बिगड़ कर कहा, ऐ सुईं, अब रुक जा यहा कल खराब कर दिया तूने। मुझे अब बोरों की ज़रूरत'



तब गुस्से में भर कर गलमुच्छन सुई के पास पहुँवा और उसे पकड़ना चाहां। लेकिन सुई पकंड़ते ही वह उंसकी उंगलीः में जोरु-से चुभ गई। उसने सुई को फिर डाँटा, “तुझसे रुकने को कहा जाता है, तू रुकती क्यों नहीं ?” 


वह अरगनी की तरफ बढ़ी | -सुई नेएकधोतीःलीः और थैला सीने लगी.। .. गलमुच्छनं को यह. सहन नहीं हुआ-. कुछ उसने बाजार से वह घोती खरीदी थी ॥ अपनी -धोती बचाने की हड़- बड़ी में. वह एक सड़सी उठा लाया और उसे रोकने केै- लिये दबे पाँव,उसके पास पहुँचा । सुई जैसे ही सीने के लिये खड़ी हुई, वैसे.ही उसने अपनी सड़सी में उसे धर दबाया । पर उससे भो कोई फायदा न हुआं। सुई तो उस सड़सी की पकड़ से तुरन्त भाग निर्केली, हाँ उंसके हाथों में ऐसा क्षटकां लगा कि वंहदर्दे के मारे कमरे भर में'नांचंता उच्वर सुई तो रुकनां ही नहीं जानतीः थी | वहूं इंधर-उधर घुमेकर कपड़ा हू ढ़ंने लेगी [-उस कंमरे'में कोई केपड़ा' ने पाकर्र वह दुसरे कमेरें को और बढ़ीं । वहाँ एंक चारपाई पर-एक दरी रंखी थी-


सुई दंरी का यैलां 'सीने जा रही थी। गलमुंच्छन को समझे में नहीं आया कि क्‍या करे। “रुक जां, रुके जा,” वह जोरों से चिल्लायो, सुई उसका बोरा न सी पाएं। लैंकिन सुईं सीतीं रही। और यह क्या: ? दरी उसकी चोरों ओर लिपंटीं जा रही: थी और सुंईं उसके किनारों:कों मिलाती हुईं सीती जा रही थीं॥- गेलंमुंच्छने के सिरे, गर्दन और हांथ-पाँव सब उसी दरी' में' कंसंते जा रहें थे. सुंई नें दरी को-उसकी चारों ओर -लपेट कर अच्छी; तरह  सी दिया तब- खिड़की की राह निकल कर उड़ती हुई. .जादूगर के पास जा पहुंची 


बेचारा गलमुच्छन अपनी चारपाईं पर दरी में कसा लेटा रहा । वह अन्दर ही हाथ-पाँव . मार रहा था; पर सुईं ने ऐसी मजबूत





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