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पंचतंत्र

पंचतंत्र हिंदी कहानियां एक तरह की बाल शिक्षा कहानियां हैं।पंचतंत्र में कहानी के अंत में दी गई शिक्षा आज से सौ साल पहले भी प्रासंगिक थी और आज भी उतनी ही प्रेरणा दायक और सटीक हैं।पंचतंत्र की कहानियां बड़ो और बच्चों दोंनो को ही सुनने में अच्छी लगती हैं ये वो कहानियां हैं जिन्हें आप किसी विशेष उम्र वर्ग में नहीं बाँट सकते।तो पेश है आपके मनोरंजन के लिए पंचतंत्र की कुछ खास छोटी छोटी कहानियां।



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Panchtantr hindi stories.


खटमल और भोली जू 

Khatmal aor bholi ju.

(Panchtantr hindi story)



एक राजा था।उसका बड़ा सा राज महल था।उस राज महल में राजा का बड़ा से शयन कक्ष था।उस कक्ष में एक भोली भाली सी जू रहती थी। 

जी हां अपने सही सुना जू।जब राजा रात को अपने कक्ष में आ कर सोता।जू चुपके से जा कर राजा का खून पीती और चुपचाप जा कर छुप जाती। जू के दिन बड़े मज़े में गुजर रहे थे।

फिर एक दिन एक खटमल महल में आया।जू ने उसे कहा "तुम यहाँ क्या कर रहे हो चलो निकलो यहाँ से" खटमल ने कहा "मैं तो तुम्हारा मेहमान हूँ..क्या तुम्हारे यहाँ मेहमानो के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं। मुझे आज रत यहाँ रहने दी कल चला जाऊँगा."

"पक्का कल चले जाओगे ?" जू ने पूछा।

" हा पक्का.." खटमल ने कहा।

" ठीक है ,राजा को काटना मत.." जू ने कहा।

लेकिन मैं तो तुम्हारा मेहमान हूँ.. क्या मुझे भूख रखोगी। मुझे राजा का खून पीने दो ,यही मेरी मेहमान नवाज़ी होगी।" खटमल ने धीरे से कहा।

" राजा को जोर से तो नहीं काटोगे.." जू ने पूछा।

" नहीं ,बिल्कुल नहीं।"

 "तो फिर ठीक है।"

रात्रि में तब राजा अपने बिस्तर पर सोया तो खटमल ने उसे जोर जोर से काटा, फिर क्या था राजा को बहुत जोर से खुजली होने लगी।राजा ने अपने सिपाहियो को बुलाया ओअर उन्हें आदेश दिया क़ि खटमल को ढूंढ कर मर दो।

खटमल चुके से पलँग के पाये में जा कर छिप गया।लेकिन जू वहीँ बिस्तर के कोने में बैठी रही। सैनिकों की उस पर पड़ गई और उन्होंने जू को मार दिया।

खटमल मौज़ से वही रहने लगा।

शिक्षा- बिना सोचे समझे किसी पर यक़ीन मत करो।


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बन्दर और कील वाला खूंटा

Bandar aor kil wala khunta.

(Panchtantr hindi story)



एक गाँव था। उसमें  एक मंदिर का निर्माण हो रहा था।मंदिर लग -भाग पूरा हो चुका था। अब दरवाजे खिड़कियों का काम रह गया था। इसके लिये काम पर बहुत सारे माँजदूर लगाये गए थे। चारो तरफ लकड़ी के बड़े बड़े लट्ठे फैले हुए थे।काम बहुत जोर शोर से चल रहा था। कारीगर बड़े बड़े लकड़ी के लठो को चीर कर तराश रहे थे।


दोपहर को एक घंटे का लांच टाइम होता था। सारे कारीगर खाना खाने ढाबे पर चले जाते थे और लकड़ी के जिन लठो को वो चीर रहे होते थे उन के भीच में कील फसा जाते थे।जिस से क़ि दुबारा जब उन में आरी चलानी पड़े तो मुश्किल न हो।


एक दिन जब सारे कारीगर खाना खाने गए हुए थे तो बंदरो का एक झुण्ड वहाँ आ गया। पास के बगीचे से उन्हें भी फल तोड़ कर खाने थे।


बंदरो के लीडर ने सब को कहा क़ि कोई भी बन्दर किसी चीज़ के साथ छेड़खानी नहीं करेगा। लेकिन उनमे एक शैतान छोटा बन्दर भी था।जो जार समान को छेड़ रहा था और किसी की बात नहीं मानता था।


बन्दर लट्ठे में फंसे कीले के साथ छेड़ - छाड़ करने लगा। वो उसे हिला - हिला कर देखने लगा। अचानक से कीला हट गया और बन्दर की पूँछ लट्ठे के चीरे हुए पाट में आ गई।


बन्दर दर्द से तड़पने लगा। उसने बहुत जोर लगाया तो उसकी पूँछ टूट गई।

शिक्षा - "व्यर्थ के काम को करने से कोई लाभ नहीं होता।"

रचना पंचतंत्र से संकलित है।

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